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Showing posts from March, 2021

Why Lord Vishnu Is Called Palanhar

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शास्त्रों में विष्णु के लिए कहा गया है - शांताकारं भुजगशयनं पद्यनाभ सुरेशम विश्वाधार गगनसदृशं मेघवर्ण शुभांगम लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिध्र्यानगमयम वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैनाथं अर्थात- जो शांत आकार हैं ,  नागों की शैय्या पर शयन करने वाले हैं। जिनकी नाभि में कमल है और जो सभी देवों के अधिपति हैं। विश्व के आधार हैं ,  आकाश के सामान हैं। बादलों के सामान जिनकी कांति है। जो लक्ष्मी के पति हैं ,  कमल के सामान नयनों वाले हैं। जो योगियों के ध्यान में दिखाई पड़ते हैं। जो समस्त भेदों को मिटाने वाले हैं और सभी लोकों के एकमात्र अधिष्ठाता हैं। साधकों को ऐसे विष्णु की साधना करनी चाहिए। सनातन धर्म में परब्रह्म को तीन रूपों में विभक्त किया गया है। एक रूप है ब्रह्मा ,  जिन्हे इस समस्त संसार का शिल्पी कहा गया है ,  वही इस सृष्टि की रचना करते हैं। वहीँ दूसरा रूप है शिव का जो इस संसार के संघारक हैं। लेकिन ,  सृष्टि के सृजन से लेकर संघारक तक की यात्रा के बीच विष्णु बसे हैं ,  जो जगत के पालनहार हैं और सृष्टि के समस्त दुखों को हरते हैं और ब्रह्माण्ड का संचालन करते हैं। इस सम्पूर्ण जगत में विष्णु की मान्

Which Is The World's Oldest Religion

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सनातन का अर्थ है शाश्वत। अर्थात ,  जो सदा से हो और सदा के लिए हो। अपने अर्थ की तरह यह धर्म भी अनादि काल से विद्यमान है और अनंत तक विद्यमान रहेगा। बड़े-बड़े ज्ञानी और इतिहासकार भी इस धर्म को ही संसार का सबसे प्राचीन धर्म मानते हैं। विद्वानों के अनुसार सनातन धर्म की उत्पत्ति श्रष्टि के साथ हुई है ,  इस धर्म को स्वयं देवी और देवताओं के द्वारा ही स्थापित किया गया है। इसीलिए ,  सनातन धर्म को सबसे प्राचीन और पवित्र ग्रन्थ माना गया है। सनातन धर्म के सबसे प्राचीन होने का पहला प्रमाण है- गीता।    गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है –    यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।   अर्थात ,  पृथ्वी पर जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है। तब-तब मैं धर्म की स्थापना के लिए अवतरित होता हूँ। इस श्लोक से यह बात प्रमाणित हो जाती है कि अधर्म के बढ़ने पर स्वयं भगवान अवतार लेकर सनातन धर्म की रक्षा करते हैं और उसे स्थापित करते हैं।सनातन धर्म के अनुसार कलयुग में जब अधर्म अपने चरम पर होगा तब ईश्वर कल्कि अवतार लेकर फिर से सनातन धर्म को स्थापित करेंगे।    सनातन धर्म के

Sanatan Dharma Is A Journey From Religion To Salvation

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धर्म क्या है  ?  एक उपासना  ?  ईश्वर की खोज करने वाला रास्ता ?  या फिर सांसारिक प्रदर्शन  ?  असल बात तो यह है कि धर्म की व्याख्या ही गलत तरह से की गयी है। धर्म है स्वयं से स्वयं की खोज ,   ईश्वर की सिर्फ उपासना पद्धति न होकर विलक्षण और विराट जीवन दर्शन है धर्म।  सनातन धर्म में इस जीवन दर्शन को बहुत ही विस्तार से समझाया गया है ,  वेदों के अनुसार मनुष्य को उसके कर्त्तव्य बताने के लिए चार पुरुषार्थ तय किये गए हैं। ये हैं धर्म ,  अर्थ ,  काम और मोक्ष। हिन्दू धर्म या सनातन धर्म के अनुयायियों का इन चार ही धरणाओं पर विश्वास रहता है ,  उनका मानना है कि मनुष्य योनि प्राप्ति का उद्देश्य यही है और धर्म से मोक्ष की प्राप्ति तक उनको इन्हीं चार पुरुषार्थों से होकर गुजरना है।    हिन्दू धर्म की धारणाएं –   वेदों में भी इन चार पुरुषार्थ का वर्णन है। इसलिए इन्हें पुरुषार्थचतुष्टय भी कहा जाता है ,  महर्षि मनु इन पुरुषार्थ चतुष्टय के प्रतिपादक हैं। लेकिन ,  अलग-अलग ऋषियों ने इन धारणाओं को विभिन्न तरीकों से स्वीकार किया है। लेकिन ,  यहाँ एक बात सत्य है कि धर्म ,  अर्थ ,  काम और मोक्ष ही जीवन यात्रा है और म

The Attainment Of Brahma By Virtue And the path of non-virtue

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सनातन धर्म में ब्रह्मत्व को प्राप्त करने के दो मार्ग बताए गए हैं। एक है सगुण और दूसरा निर्गुण। सगुण से तात्पर्य है ब्रह्म के आकार की उपासना करना। अर्थात् उन्हें किसी रूप में पूजना। जैसे – राम व कृष्ण आदि।  निर्गुण ब्रह्म के उपासकों का मानना है कि ईश्वर का न अंत है और न ही आदि वह अनंत है। बिना किसी शर्त किसी भी रूप में उसकी साधना की जा सकती है। लेकिन वास्तव में ब्रह्म के साक्षात्कार के दोनों मार्ग एक ही हैं। यानि सगुण से ही व्यक्ति निर्गुण ब्रह्म की ओर बढ़ता है।  यह एक तरह से अभ्यास है। यानी जबतक हम कृष्ण की कथा में कहानी ढूंढते रहेंगे तब तक कृष्णत्व के प्रेम और वात्सल्य की अनुभूति ही नहीं करेंगे। लेकिन, जब हम अपने चिंतन अध्यात्म, ध्यान और योग की शक्ति से कृष्ण कथा का पान करने लगेंगे, तब बोध होगा कि वह रूप उपासना का जरिया मात्र है और ब्रह्म तो हर जगह विद्यमान है उसी दिन हमें ब्रह्म का साक्षात्कार भी हो जाता है।  निराकार ब्रह्म क्या है  वास्तव में ईश्वर निराकार ही है, वह किसी भी आकार में नहीं बंधता। समस्त प्राणीमात्र और संसार की ऊर्जा का स्त्रोत उसी ईश्वर में विद्यमान है जो निराकार है। ज

How Is Dharma Different From Religion

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मनुष्य में असीमित शक्तियां हैं ,   वह असाधारण है। वह चाहे तो अपनी इन्द्रियों को जागृत करके किसी भी असम्भव कार्य को संभव कर सकता है। हमारे पुराणों व ग्रंथों में ऋषि-मुनियों ने ऐसा करके भी दिखाया है। लेकिन ,   इन असीमित शक्तियों को एक सकारात्मक दृष्टि देकर मनुष्य को मानव योनि की प्राप्ति का उद्देश्य बताने के लिए ही धर्म की उत्पत्ति हुई ,   धर्म एक ऐसी अवधारणा है जो हमे जीवन का मर्म समझाती है। धर्म हमें बताता है कि हमारी इन असीमित शक्तियों का केंद्र ब्रह्म ही है और समस्त ब्रह्माण्ड में सबकुछ उसकी ही ऊर्जा से चल रहा है।  लेकिन ,   इस ब्रह्म तक पहुँचने का मार्ग बताने के लिए किसी ऐसी मान्यता का होना आवश्यक हो जाता है ,  जिसपर मनुष्य का अचेतन मन स्थिर हो सके और उसका अनुसरण करके अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर सके। यहीं से मजहब या पथ ,  मत की उत्पत्ति होती है ,  जो हमें ईश्वर यानी ब्रह्म तक ले जाने का मार्ग बताती है। इसीलिए ,  यह ध्यान रखना आवश्यक है कि धर्म एक क्रियात्मक वस्तु है और मजहब या मत विश्वासत्मक वस्तु है। सनातन धर्म या हिन्दू धर्म जीवन के मार्ग को जितना तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण स

why-hindu-dharma-is-called-sanatana-dharma

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सनातन का अर्थ है शाश्वत। यानी ऐसा सत्य जिसे कभी भी मिटाया या झुठलाया न जा सके। हिंदू और सनातन धर्म को मानने वाले इसी सत्य के सिद्धांत पर विश्वास करते हैं। उनका मानना है कि ईश्वर ऐसी शक्ति है जो पूरे ब्रह्मांड का संचालन कर रही है और वही शाश्वत भी है। यानी ईश्वर को कभी भी झुठलाया या मिटाया नहीं जा सकता। हिंदू और सनातन धर्म के लोग ईश्वर के इसी शाश्वत स्वरूप पर विश्वास करते हैं। मिलती-जुलती शिक्षाओं, वेद-पुराणों के कथन पर दोनों ही धर्म को मानने वाले लोगों का भरोसा हैं। यही कारण है कि सनातन धर्म को हिंदू धर्म भी कहा जाता है। लेकिन, वेदों के अनुसार सनातन धर्म की उत्पत्ति पृथ्वी पर सभ्यताओं या मानव की उत्पत्ति से भी सहस़्त्रों वर्शों पहले हो गई थी। ऋषि-मुनि इसी धर्म की शिक्षाओं और वेद-पुराणों में लिखी बातों का प्रचार कर रहे थे। किंतु, सिंधु घाटी सभ्यता के विकसित होने के बाद आर्यावर्त के लोगों को हिंदू कहा जाने लगा और यहीं से हिंदू धर्म भी अस्तित्व में आया। सत्य यही है कि हिंदू धर्म सनातन संस्कृति का हिस्सा है, जिसमें मनुष्य के कर्तव्यों का निर्धारण किया गया है। लोक कल्याण के लिए उसकी जिम्म्मे