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Why Lord Vishnu Is Called Palanhar

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शास्त्रों में विष्णु के लिए कहा गया है - शांताकारं भुजगशयनं पद्यनाभ सुरेशम विश्वाधार गगनसदृशं मेघवर्ण शुभांगम लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिध्र्यानगमयम वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैनाथं अर्थात- जो शांत आकार हैं ,  नागों की शैय्या पर शयन करने वाले हैं। जिनकी नाभि में कमल है और जो सभी देवों के अधिपति हैं। विश्व के आधार हैं ,  आकाश के सामान हैं। बादलों के सामान जिनकी कांति है। जो लक्ष्मी के पति हैं ,  कमल के सामान नयनों वाले हैं। जो योगियों के ध्यान में दिखाई पड़ते हैं। जो समस्त भेदों को मिटाने वाले हैं और सभी लोकों के एकमात्र अधिष्ठाता हैं। साधकों को ऐसे विष्णु की साधना करनी चाहिए। सनातन धर्म में परब्रह्म को तीन रूपों में विभक्त किया गया है। एक रूप है ब्रह्मा ,  जिन्हे इस समस्त संसार का शिल्पी कहा गया है ,  वही इस सृष्टि की रचना करते हैं। वहीँ दूसरा रूप है शिव का जो इस संसार के संघारक हैं। लेकिन ,  सृष्टि के सृजन से लेकर संघारक तक की यात्रा के बीच विष्णु बसे हैं ,  जो जगत के पालनहार हैं और सृष्टि के समस्त दुखों को हरते हैं और ब्रह्माण्ड का संचालन करते हैं। ...

The Attainment Of Brahma By Virtue And the path of non-virtue

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सनातन धर्म में ब्रह्मत्व को प्राप्त करने के दो मार्ग बताए गए हैं। एक है सगुण और दूसरा निर्गुण। सगुण से तात्पर्य है ब्रह्म के आकार की उपासना करना। अर्थात् उन्हें किसी रूप में पूजना। जैसे – राम व कृष्ण आदि।  निर्गुण ब्रह्म के उपासकों का मानना है कि ईश्वर का न अंत है और न ही आदि वह अनंत है। बिना किसी शर्त किसी भी रूप में उसकी साधना की जा सकती है। लेकिन वास्तव में ब्रह्म के साक्षात्कार के दोनों मार्ग एक ही हैं। यानि सगुण से ही व्यक्ति निर्गुण ब्रह्म की ओर बढ़ता है।  यह एक तरह से अभ्यास है। यानी जबतक हम कृष्ण की कथा में कहानी ढूंढते रहेंगे तब तक कृष्णत्व के प्रेम और वात्सल्य की अनुभूति ही नहीं करेंगे। लेकिन, जब हम अपने चिंतन अध्यात्म, ध्यान और योग की शक्ति से कृष्ण कथा का पान करने लगेंगे, तब बोध होगा कि वह रूप उपासना का जरिया मात्र है और ब्रह्म तो हर जगह विद्यमान है उसी दिन हमें ब्रह्म का साक्षात्कार भी हो जाता है।  निराकार ब्रह्म क्या है  वास्तव में ईश्वर निराकार ही है, वह किसी भी आकार में नहीं बंधता। समस्त प्राणीमात्र और संसार की ऊर्जा का स्त्रोत उसी ईश्वर में विद्यमान ...

why-hindu-dharma-is-called-sanatana-dharma

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सनातन का अर्थ है शाश्वत। यानी ऐसा सत्य जिसे कभी भी मिटाया या झुठलाया न जा सके। हिंदू और सनातन धर्म को मानने वाले इसी सत्य के सिद्धांत पर विश्वास करते हैं। उनका मानना है कि ईश्वर ऐसी शक्ति है जो पूरे ब्रह्मांड का संचालन कर रही है और वही शाश्वत भी है। यानी ईश्वर को कभी भी झुठलाया या मिटाया नहीं जा सकता। हिंदू और सनातन धर्म के लोग ईश्वर के इसी शाश्वत स्वरूप पर विश्वास करते हैं। मिलती-जुलती शिक्षाओं, वेद-पुराणों के कथन पर दोनों ही धर्म को मानने वाले लोगों का भरोसा हैं। यही कारण है कि सनातन धर्म को हिंदू धर्म भी कहा जाता है। लेकिन, वेदों के अनुसार सनातन धर्म की उत्पत्ति पृथ्वी पर सभ्यताओं या मानव की उत्पत्ति से भी सहस़्त्रों वर्शों पहले हो गई थी। ऋषि-मुनि इसी धर्म की शिक्षाओं और वेद-पुराणों में लिखी बातों का प्रचार कर रहे थे। किंतु, सिंधु घाटी सभ्यता के विकसित होने के बाद आर्यावर्त के लोगों को हिंदू कहा जाने लगा और यहीं से हिंदू धर्म भी अस्तित्व में आया। सत्य यही है कि हिंदू धर्म सनातन संस्कृति का हिस्सा है, जिसमें मनुष्य के कर्तव्यों का निर्धारण किया गया है। लोक कल्याण के लिए उसकी जिम्म्मे...

Sanatana Dharma - The Path Of Liberation

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  What is Sanatana Dharma ? Sanatana Dharma has a wide spectrum of culture, beliefs and traditions. Sanatana is not merely a word, it's a way of life which was designed to best ensure the continuity of humanity on this earth and provide the entire population with spiritual sustenance. Sanatana Dharma is a way of truth that places individual spiritual practices through ritual, Yoga, mantra and meditation over any particular belief, faith or institution. Sanatana Dharma believes that truth is even more important than God, whose best definition is the eternal truth. Sanatana Dharma is beyond all views of monotheism or polytheism, and it teaches us to see the Divine in everything as the power of universal consciousness. The two words, "Sanatana Dharma", come from the ancient Sanskrit language. "Sanatana" is a Sanskrit word that denotes that which is Anadi (beginningless), Anantha (endless) and does not cease to be, that which is eternal and everlasting. The History ...