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The Attainment Of Brahma By Virtue And the path of non-virtue

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सनातन धर्म में ब्रह्मत्व को प्राप्त करने के दो मार्ग बताए गए हैं। एक है सगुण और दूसरा निर्गुण। सगुण से तात्पर्य है ब्रह्म के आकार की उपासना करना। अर्थात् उन्हें किसी रूप में पूजना। जैसे – राम व कृष्ण आदि।  निर्गुण ब्रह्म के उपासकों का मानना है कि ईश्वर का न अंत है और न ही आदि वह अनंत है। बिना किसी शर्त किसी भी रूप में उसकी साधना की जा सकती है। लेकिन वास्तव में ब्रह्म के साक्षात्कार के दोनों मार्ग एक ही हैं। यानि सगुण से ही व्यक्ति निर्गुण ब्रह्म की ओर बढ़ता है।  यह एक तरह से अभ्यास है। यानी जबतक हम कृष्ण की कथा में कहानी ढूंढते रहेंगे तब तक कृष्णत्व के प्रेम और वात्सल्य की अनुभूति ही नहीं करेंगे। लेकिन, जब हम अपने चिंतन अध्यात्म, ध्यान और योग की शक्ति से कृष्ण कथा का पान करने लगेंगे, तब बोध होगा कि वह रूप उपासना का जरिया मात्र है और ब्रह्म तो हर जगह विद्यमान है उसी दिन हमें ब्रह्म का साक्षात्कार भी हो जाता है।  निराकार ब्रह्म क्या है  वास्तव में ईश्वर निराकार ही है, वह किसी भी आकार में नहीं बंधता। समस्त प्राणीमात्र और संसार की ऊर्जा का स्त्रोत उसी ईश्वर में विद्यमान ...

What is The Concept Of God In Sanatan Dharma?

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गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है। मैं अजन्मा हूं। मैं कण-कण में विराजमान हूं। मैं सभी में हूं। तुम मेरी ही शक्ति से सबकुछ देख सकते हो और सबकुछ सुन सकते हो। लेकिन, मुझे नहीं देख सकते। क्योंकि, मैं अगोचर हूं। यहां श्रीकृष्ण उस शक्ति की बात कर रहे हैं, जिसे न तो देखा जा सकता है और न ही सुना जा सकता है। ब्रह्मांड की इस शक्ति को सिर्फ और सिर्फ महसूस भर ही किया जा सकता है। सनातन धर्म में ईश्वर यानी ब्रह्म की अवधारणा भी यही है। कि, समस्त संसार ऐसे सत्य से संचालित हो रहा है, जो शाश्वत है। वह सत्य है ईश्वर। सृष्टि की रचना से पहले भी वही था और सृष्टि के बाद भी वही होगा। ईश्वर का तो कहना है कि समस्त संसार में जो कुछ भी है, उसके पीछे वही शक्ति रूपी ब्रह्म है और सबकुछ एक क्षण में उसी में समा भी जाना है। जिस तरह सागर में लहर आने के बाद उसी के पानी में समा जाती है, उसी तरह ब्रह्म का भी व्यवहार है। समस्त उर्जा एक दिन ब्रह्म में ही समा जानी है। वेद-पुराण के अनुसार किसी भी प्राणी या जंतु की यात्रा तीन शाश्वत सत्यों के बीच से होती है। इसके अनुसार यह सत्य है कि संसार में सिर्फ ब्रह्म, आत्मा और मोक्ष ही सत्य ह...