Sanatan Dharma Is A Journey From Religion To Salvation



धर्म क्या है एक उपासना ईश्वर की खोज करने वाला रास्ताया फिर सांसारिक प्रदर्शन असल बात तो यह है कि धर्म की व्याख्या ही गलत तरह से की गयी है। धर्म है स्वयं से स्वयं की खोज,  ईश्वर की सिर्फ उपासना पद्धति न होकर विलक्षण और विराट जीवन दर्शन है धर्म।  सनातन धर्म में इस जीवन दर्शन को बहुत ही विस्तार से समझाया गया हैवेदों के अनुसार मनुष्य को उसके कर्त्तव्य बताने के लिए चार पुरुषार्थ तय किये गए हैं। ये हैं धर्मअर्थकाम और मोक्ष। हिन्दू धर्म या सनातन धर्म के अनुयायियों का इन चार ही धरणाओं पर विश्वास रहता हैउनका मानना है कि मनुष्य योनि प्राप्ति का उद्देश्य यही है और धर्म से मोक्ष की प्राप्ति तक उनको इन्हीं चार पुरुषार्थों से होकर गुजरना है। 

 

हिन्दू धर्म की धारणाएं –

 

वेदों में भी इन चार पुरुषार्थ का वर्णन है। इसलिए इन्हें पुरुषार्थचतुष्टय भी कहा जाता हैमहर्षि मनु इन पुरुषार्थ चतुष्टय के प्रतिपादक हैं। लेकिनअलग-अलग ऋषियों ने इन धारणाओं को विभिन्न तरीकों से स्वीकार किया है। लेकिनयहाँ एक बात सत्य है कि धर्मअर्थकाम और मोक्ष ही जीवन यात्रा है और मनुष्य संसार में जन्म से मृत्यु तक इन चरणों को स्वीकारता है और इसी अनुसार आगे भी बढ़ता है। 

 

धर्म –

 

धर्म का अपना स्वभाव होता है। यह स्वभाव है खोज। दरअसल,  धर्म एक संवाद हैरहस्य हैसंवेदना है और आत्मा की खोज है।  इस ब्रह्माण्ड में स्वयं को खोजने का नाम ही है धर्म। धर्म का नाम जुबान पर आते ही हमें ऐसा प्रतीत होता है कि इसके बारे में कुछ जानना जरुरी है। हमें लगता है कि धर्म कोई शक्ति या फिर रहस्य है जो जीवनमृत्यु और जन्म के यथार्थ को जानती है।  धर्म कि कोई परिभाषा निर्धारित नहीं हैजितना ईश्वर के विराट स्वरुप को जानना कठिन हैउतना ही धर्म को समझना भी कठिन है। लेकिनयह सत्य है कि अनंत और अज्ञात में छलांग लगाने का नाम ही है धर्म। धर्म को परिभाषित करने के लिए कई मनीषियों ने विचार किय। किन्तुहमारे ऋषियों के अनुसार सृष्टि और स्वयं के हितों के लिए किये जाने वाले कर्म ही धर्म हैं।  मनुष्य के चार पुरुषार्थों में यह सबसे महत्वपूर्ण पुरुषार्थ है और जीवन का उद्देश्य धर्म ही बताता है। 

 

अर्थ –

 

मनुष्य का स्वभाव कामना प्रधान होता है। इन कामनाओं की पूर्ति के लिए वह अर्थ की तरफ दौड़ता है। क्योंकिधर्म के बाद दूसरा स्थान अर्थ का ही है। आचार्य चाणक्य भी अर्थ को महत्व देते हुए इसे धर्म और काम का मूल मानते हैं। उनके अनुसार भूमिधनकलाविद्यामित्र सभी अर्थ की ही श्रेणियां हैं और इनकी संख्या को निर्धारित कर पाना संभव नहीं है। क्योंकिइनका अर्जन मनुष्य अपनी आवश्यकतों के अनुसार करता हैजिस अनुसार मनुष्य की आवश्यकता बढ़ती हैउसी प्रकार अर्थ भी अपना स्वरुप बदलता रहता है। 

 

काम –

 

मनुष्य जन्म से ही कामनाओं से घिरा रहता है। प्रत्येक मनुष्य में यह कामनाएं अलग-अलग होती हैं। कभी मनुष्य सांसारिक और भौतिक सुख तक ही सीमित रहता है तो कोई इससे ऊपर उठकर शारीरिक सुख की इच्छाओं की ओर आगे बढ़ता है। लेकिनऐसा कोई मानुष नहीं है जिसमें कामनाएं न हों।  इनकी ही पूर्ति के लिए वह संसार में प्रयत्नशील रहता है। इसीलिए हिन्दू धर्म के चारों पुरुषार्थों में काम से अच्छा है अर्थ और अर्थ से अच्छा है धर्म। 

 

मोक्ष –

 

मोक्ष परम पुरुषार्थ है। इस चरण पर आकर मनुष्य की सभी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं और वह परम तत्व यानी कि ब्रह्म का साक्षात्कार कर लेता है।  भारतीय दर्शन में कहा भी गया है कि मनुष्य अपने अज्ञान के कारण ही संसार में बार बार जन्म और मृत्यु को प्राप्त करता है। लेकिनएक बार मोक्ष मिलने के बाद जन्म या मृत्यु की आवश्यकता नहीं रहती।  इसलिए धर्म से मोक्ष कि यात्रा पर ही सनातन धर्म या हिन्दू धर्म की सभी अवधारणाएं टिकी हुई हैं। 


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