What is The Concept Of God In Sanatan Dharma?

What is the concept of God in Sanatan Dharma?


गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है। मैं अजन्मा हूं। मैं कण-कण में विराजमान हूं। मैं सभी में हूं। तुम मेरी ही शक्ति से सबकुछ देख सकते हो और सबकुछ सुन सकते हो। लेकिन, मुझे नहीं देख सकते। क्योंकि, मैं अगोचर हूं। यहां श्रीकृष्ण उस शक्ति की बात कर रहे हैं, जिसे न तो देखा जा सकता है और न ही सुना जा सकता है। ब्रह्मांड की इस शक्ति को सिर्फ और सिर्फ महसूस भर ही किया जा सकता है।

सनातन धर्म में ईश्वर यानी ब्रह्म की अवधारणा भी यही है। कि, समस्त संसार ऐसे सत्य से संचालित हो रहा है, जो शाश्वत है। वह सत्य है ईश्वर। सृष्टि की रचना से पहले भी वही था और सृष्टि के बाद भी वही होगा। ईश्वर का तो कहना है कि समस्त संसार में जो कुछ भी है, उसके पीछे वही शक्ति रूपी ब्रह्म है और सबकुछ एक क्षण में उसी में समा भी जाना है। जिस तरह सागर में लहर आने के बाद उसी के पानी में समा जाती है, उसी तरह ब्रह्म का भी व्यवहार है। समस्त उर्जा एक दिन ब्रह्म में ही समा जानी है।

वेद-पुराण के अनुसार किसी भी प्राणी या जंतु की यात्रा तीन शाश्वत सत्यों के बीच से होती है। इसके अनुसार यह सत्य है कि संसार में सिर्फ ब्रह्म, आत्मा और मोक्ष ही सत्य है। इससे विरक्त होकर जो कुछ भी संसार में विद्यमान है वह सिर्फ माया मात्र है।

ब्रह्म यानि की ऐसा सत्य जिसे कभी भी काटा नहीं जा सकता। जो संसार के हर सजीव व निर्जीव में व्याप्त है, जो अगोचर और अकाट्य है। ब्रह्म का कहना है कि मैं हर जगह विद्यमान हूं। तुममें भी और उसमें भी और समस्त संसार ब्रह्ममय है। -

अहम् ब्रह्मास्मि, तत्वस्मि। 
  एकमेव ब्रह्म सत्य।।

अर्थात। मैं ही ब्रह्म हूं, तुम भी ब्रह्म हो और वह ब्रह्म ही सत्य है। समस्त संसार ब्रह्ममय है। सृष्टि से पहले भी वही था और सृष्टि के बाद भी वही होगा। वास्तव में ईश्वर की अवधारणा उस उर्जा से है, जो हर सजीव व निर्जीव वस्तु में है। उसका कोई आकार नहीं है, वह उर्जा ही है, जिससे सबकुछ संचालित हो रहा है।

दूसरा शाश्वत आत्मा को बताया गया है। यानी आत्मा भी अकाट्य सत्य है, उसकी उत्पत्ति ब्रह्म से ही है। इसलिए ब्रह्म के साक्षात्कार से पहले आत्मा का बोध होना जरूरी है, जो हर प्राणी, हर जीव में है। इसलिए ब्रह्म हर किसी में है, आवश्यकता है तो उस ब्रह्मरूपी ज्ञान को पहचानने की।

तीसरा और अंतिम शाश्वत है-मोक्ष। यानी, ब्रह्म ने जो भी रचना की है, उसका उद्देश्य मोक्ष को खोजना है। क्योंकि, एक मोक्ष ही है जो ब्रह्म दर्शन का सौभाग्य दे सकता है। इसलिए, जीवन का ध्येय मोक्ष प्राप्ति ही है। समस्त ऋषि-मुनि भी मोक्ष प्राप्ति के लिए सहस्त्रों वर्षों तक तप-साधना में लीन रहे।

सनातन धर्म -


सनातन धर्म को जैसा भी जिस किसी ने समझा वैसा ही उसने प्रस्तुत कर दिया। यह धर्म कहता है कि जीवन का पथ सनातन है, यानि कभी न बदला जाने वाला सत्य है। सभी प्राणी और देवता इसी पथ से प्रगति तक पहुंचे है और एक दिन सभी को मोक्ष की प्राप्ति करनी है।

इस धर्म की मोक्ष की अवधारणा को वैज्ञानिक स्वीकार्यता भी मिलना शुरू हो गई है। हालांकि, मोक्ष प्राप्ति का मार्ग इतना आसान नहीं है। इसके लिए साधना, चेतना, योग व ध्यान की अत्यंत आवश्यकता होती है। इसीलिए तो महान ऋषियों को भी मोक्ष प्राप्ति के लिए अपनी ध्यान व साधना से सहस्त्रों वर्ष तक तप करना पड़ा।

सनातन धर्म में आत्मा की अवधारणा की स्वीकार्यता है। सनातनी आत्मा को ब्रह्म का ही अंश  मानते हैं। सनातनियों के अनुसार ब्रह्म की तरह आत्मा भी अजेय व अमर है। वह भी कभी न बदले जाने वाले सत्य की तरह है। अर्थात, आत्मा सत्य है और वह कभी नहीं मरती। आत्मा तो केवल शरीर का त्याग करती है और संसार में एक शरीर से दूसरे शरीर तक विचरण करती रहती है।

ब्रह्म का कहना है कि समस्त प्राणियों के अंदर उर्जा यानि आत्मा के रूप में उसी का वास होता है। अगर, किसी को ब्रह्म का साक्षात्कार करना है या ब्रह्म को जानना है तो पहले उसे अपनी आत्मा के स्वरूप को समझना होगा, उसके उस प्रकाश को समझना होगा, जो कभी अंधकारमय नहीं होगा। उस दिव्य ज्ञान को समझना होगा, जो आत्मा में ही निहित है और ब्रह्मांड का अर्थ हमें बताता है। जिस किसी ने भी आत्मा की इस अवधारणा को समझ लिया वह समस्त संसार में व्याप्त उस ब्रह्म रूपी उर्जा को भी जान लेगा, जो समस्त संसार के कण-कण का संचालन कर रही है और जो आदि से लेकर अनंत तक व्याप्त है।

इसलिए सनातन का निर्गुण मार्ग, ऐसे ब्रह्म की परिकल्पना करता है, जिसका कोई स्वरूप ही नहीं है, जो किसी भी आकार में न ढ़लकर प्राणी के अनुसार खुद को बदलता है। इस ब्रह्म की उपासना के लिए भी कोई नियम या कर्मकांड नहीं तय है। सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्म का दर्शन सिर्फ अपने मन की चेतना और ध्यान-योग व साधना से किया जा सकता है। अपने सभी चक्रों को जागृत कर व इंद्रियों पर नियंत्रण करके ईश्वर के इस विस्तृत स्वरूप को समझा जा सकता है।

उस असीम, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिशाली उर्जा को महसूस किया जा सकता है, जो समूचे ब्रह्मांड का संचालन कर रही है और उसके कण-कण में विद्यमान होकर उसे उर्जा दे रही है। वह उर्जा जो प्राणी-जीव-जंतु में निहित है और सभी को सद्मार्ग की ओर चलने की प्रेरणा दे रही है। ब्रह्म का एक ही स्वरूप है कि वह किसी भी आकार में प्रकाशमान हेाता रहता है। जीवन ज्योति की अवधारणा भी यहीं से अस्तित्व में आती है।

सनातन धर्म की उत्पत्ति -


ऐसा माना जाता है कि सनातन धर्म की उत्पत्ति ब्रह्म के साथ ही हुई। सृष्टि की रचना से पहले से यह धर्म है और उसके बाद भी सनातन धर्म विद्यमान रहेगा। क्योंकि, सनातन धर्म शाश्वत सत्य है, इस धर्म की बातों या ज्ञान को कभी भी बदला नहीं जा सकता। ऋषि-मुनि वेद और पुराणों को पढ़कर जो कुछ भी हमें बताया हैं, उसके अपने वैज्ञानिक तर्क भी है। हालांकि, इतिहास की दृष्टि से  सनातन धर्म सहस्त्रों वर्ष पुराना है। सिंधु घाटी सभ्यता में भी हिंदू धर्म के कई प्रमाण व चिह्न मिलते है।

हड़प्पा व मोहनजोदाड़ो की खुदाई के अनुसार मातृदेवी की मूर्तियां, शिव-पशुपति जैसे देवताओं की प्रतिमाएं, प्रकृति पूजा व पीपल की पूजा के प्रमाण मिलते हैं। यह सभ्यता कब विकसित हुई, इसके बारे में तो कुछ भी स्पष्ट नहीं है। इस समय शैव, वैष्णव, गणपत सम्प्रदाय के लोगों के प्रमाण मिलते हैं, जो अलग-अलग देवी देवताओं की पूजा करते थे, यहीं से ब्रह्म के स्वरूप का ज्ञान कराने के लिए सनातन धर्म की उत्पत्ति भी मानी जाती है।



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